Jyeshtha Purnima 2023 vrat will be observed on Saturday, June 3. 2023. The Purnima tithi will start at 11:16 AM, June 03, 2023.
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ज्येष्ठ पूर्णिमा कहा जाता है। ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करने की मान्यता है। माना जाता है कि ऐसा करने से सभी पापों का नाश होता है। इस दिन पितरों के लिए पूजा और दान करने की परंपरा है।
महिलाएं इस दिन भगवान शंकर और भगवान विष्णु की पूजा, पति की लंबी उम्र के लिए करती हैं। इस दिन वट पूर्णिमा व्रत भी रखा जाता है। इस दिन महिलाएं श्रृंगार करके पति की लंबी उम्र की कामना करके वट वृक्ष की पूजा करती हैं।
ज्येष्ठ पूर्णिमा का महत्व
ज्येष्ठ पूर्णिमा का स्नान दान आदि के लिए तो महत्व है ही, साथ ही यह Purnima खास बात के लिए और जानी जाती है, जो यह है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ अमरनाथ की यात्रा के लिए गंगाजल लेकर आज के दिन ही शुरुआत करते हैं। इसके साथ ही यह दिन उन लोगों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण होता है, जिन युवक और युवतियों का विवाह होते होते रुक जाता है या फिर उसमें किसी प्रकार की कोई बाधा आ रही होती है, तो भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह हिंदू वर्ष का तीसरा महीना होता है। भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन तीर्थ स्नान, दान और व्रत करने का विशेष महत्व बताया गया है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा पर बरगद के पेड़ की पूजा
इस दिन बरगद के पेड़ के प्रति बहुत सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करते हुए पूजा की जाती है। बरगद के पेड़ को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। यह मान्यता है कि सावित्री और यम के बीच की बातचीत बरगद के पेड़ के नीचे ही हुई थी।
बरगद का पेड़ देवताओं की त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है इसलिए, बरगद के पेड़ की पूजा करने से ब्रह्मांड के रखवाले तीनों देवता प्रसन्न हो जाते हैं। यह माना जाता है कि यदि ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत पूजा का सही तरीके से किया जाये, तो एक विवाहित महिला के शारीरिक और मानसिक कल्याण में बहुत खुशीयां आती हैं।
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ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत विधि (Jyeshtha Purnima Vrat Vidhi)
ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण किए जाते है।
इसके बाद दो बांस की टोकरियाँ ली जाती है। एक टोकरी में सावित्री की प्रतिमा स्थापित की जाती है और दूसरी टोकरी में रोली, मोली, चावल, सुपारी, नारियल और पंचमेवा साथ पूजन का भी सामान रखा जाता है।
किसी भी वटवृक्ष के नीचे आकर विधि विधान से हाथ में जल और चावल लेकर ज्येष्ठ पूर्णिमा और वट पूर्णिमा का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लिया जाता है।
फिर वट वृक्ष (बरगद के पेड़) की पूजा और पति की दीर्घायु के लिए प्रार्थना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो महिलाएं ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत करती हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं क्योंकि इसी दिन सावित्री माता ने अपने पति को यमराज से इस व्रत को करने के बाद वापस लाया था, तभी से इस व्रत को वट पूर्णिमा व्रत भी कहा जाता है।
इसके बाद महिलाएं वट वृक्ष की चारों ओर मोली लपेटती हैं और सात बार चक्कर लगाते हुए विधि विधान से वट वृक्ष की पूजा करती है।
पूजा के बाद आरती और कथा सुनी जाती है या आपस में सुनाई जाती है।
कबीरदास जयंती
कथाओं के अनुसार संत कबीर का जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ था। इसलिए हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन Kabirdas jayanti मनाई जाती है। कबीरदास भक्ति काल के प्रमुख कवि थे, जिन्होंने अपना सारा जीवन समाज की बुराइयों को दूर करने में लगा दिया।
ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत कथा (Jyeshtha Purnima Vrat Katha)
पौराणिक व्रत कथा के अनुसार राजा अश्वपति के घर देवी सावित्री के अंश से पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम महाराज ने सावित्री रखा। पुत्री युवा अवस्था को प्राप्त हुई देखकर राजा ने मंत्रियों से सलाह की। इसके बाद राजा ने सावित्री से कहा कि उसे योग्य वर को देने का समय आ गया है। वह उसकी आत्मा के अनुरूप वर को नहीं पा रहा इसलिए वह उसे पुत्री भेज रहा है ताकि वह स्वयं ही अपने योग्य वर ढूंढ ले। पिता की आज्ञा पाकर सावित्री निकल पड़ी और फिर एक दिन उसने सत्यवान को देखा और मन ही मन उसे वर चुन लिया। जब उसने देवऋषि नारद जी को यह बात पता चली; तब ऋषि नारद सावित्री के पास आए और कहने लगे कि उसका पति अल्पायु है। वह कोई दूसरा वर देख ले पर सावित्री ने कहा कि वह एक हिंदू नारी है, इसलिए वह पति को एक बार ही चुनती है। सावित्री की बात सभी ने स्वीकार की और फिर एक दिन उन दोनों का विवाह हो गया।
एक दिन सत्यवान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी। सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति के सिर को रख उसे लिटा दिया। उसी समय सावित्री ने देखा कि अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे हैं। सत्यवान के शरीर को दक्षिण दिशा की ओर ले कर जा रहे हैं। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चल देती है। उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है, अब उसे वापस लौट जाना चाहिए। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा कि जहां उसके पति रहेंगे, उसे उनके साथ रहना है। यही उसका पत्नी धर्म है। सावित्री के मुख से यह उत्तर सुनकर यमराज बहुत खुश हुए। उन्होंने सावित्री को वर मांगने को कहा और बोले कि वह उसे तीन वर् देते हैं। वह कौन-कौन से तीन वर् हासिल करना चाहती हैं। तब सावित्री ने सास ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस लाना और अपने पति सत्यवान के पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। सावित्री के यह तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा कि ऐसा ही होगा। सावित्री ने अपनी बुद्धिमता से यमराज को उलझा लिया। पति के बिना पुत्रवती होना जितना असंभव था, उतना ही यमराज का अपने वचन से मुख फेरना। अंततः उन्हें सत्यवान के प्राण वापस करने पड़े। सावित्री उसी वट वृक्ष के पास लौट आई, जहां सत्यवान मृत पड़ा था। सत्यवान के मृत शरीर में फिर से संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से ना केवल अपने पति को उन्हें जीवित करवाया बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए, उनके ससुर को खोया राज्य फिर दिलवाया।
सावित्री के पतिव्रता धर्म की कथा का सार यह है कि स्त्री अपने पति को सभी दुख और कष्टों से दूर रखने में समर्थ होती है। जिस प्रकार पतिव्रता धर्म के बल से ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के बंधन छुड़ा लिया था। इतना ही नहीं खोया हुआ राज्य तथा अंधे सास-ससुर की नेत्र ज्योति भी वापस दिला दी। कथा की समाप्ति के उपरांत अपने पति को रोली और अक्षत लगाकर चरणस्पर्श किए जाते हैं। इसके बाद प्रसाद वितरण किया जाता है। वट वृक्ष का पूजन-अर्चन और ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि 2023 (Jyeshtha Purnima 2023 Date)
ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत मंगलवार 3 जून, 2023 रखा जाएगा।
3 जून, 2023 को 11:16AM पर ज्येष्ठ पूर्णिमा आरम्भ होगी।
4 जून, 2023 को 09:11 AM पर ज्येष्ठ पूर्णिमा समाप्त होगी।
Frequently Asked Questions
3rd of JUne
3 जून, 2023 को 11:16AM
4 जून, 2023 को 09:11 AM