Varuthini Ekadashi 2023, also known as Baruthani Ekadashi, vrat is being observed on Sunday, 16th April 2023. The Varuthini Ekadashi parana time is on 17th April 2023, from 05:54 AM to 08:29 AM.
वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। यह सबसे शुभ और कल्याणकारी एकादशी है। यह व्रत रखने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से सूर्य ग्रहण के समय स्वर्ण दान करने से फल प्राप्त होता है।
शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक इस एकादशी (Ekadashi) का व्रत करता है, उसे पुण्य फल प्राप्त होता है और वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान वामन की पूजा और अर्चना की जाती है, जो भगवान विष्णु के अवतार हैं। ऐसा माना जाता है कि वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से विभिन्न बुराइयों से व्यक्ति सुरक्षित हो जाता है। जिन लोगों के जीवन में मृत्यु तुल्य कष्ट बना हुआ है, उन्हें इस व्रत को करने से बहुत लाभ प्राप्त होता है और कष्ट दूर होता है।
Varuthini Ekadashi 2023 Overview
Ekadashi Name |
Varuthini Ekadashi |
Also known as |
Baruthani Ekadashi |
Varuthini Ekadashi 2023 Date |
16th April 2023 |
Day |
Sunday |
वरुथिनी एकादशी व्रत के दिन ध्यान रखने योग्य बातें
- वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी की माला अर्पित करनी चाहिए। इस दिन पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाना शुभ माना जाता है। पीपल के पेड़ में विष्णु जी का वास माना जाता है।
- वरुथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु को केसर युक्त खीर, पीला फल, पीले रंग की मिठाई का भोग लगाना शुभ फल प्रदान करता है।
- भगवान विष्णु जी के साथ-साथ मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए, धन के साथ-साथ सुख और समृद्धि की भी प्राप्ति होती है।
वरुथिनी एकादशी व्रत विधि (Baruthani Ekadashi 2023 Vrat Vidhi)
- दशमी तिथि (एकादशी के 1 दिन पहले) को शामके समय सूर्य अस्त के बाद भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
- वरुथिनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बादशाह वस्त्र धारण किये जाते हैं।
- इसके बाद एक चौकी पर गंगाजल छिड़ककर स्वच्छ किया जाता है और आसन बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित की जाती है।
- उसके बाद भगवान विष्णु की अक्षत, दीपक आदि सोलह सामग्री से पूजा की जाती है।
- यदि घर के पास पीपल का पेड़ हो, तो उसकी पूजा भी की जाती है और उसकी जड़ में कच्चा दूध चढ़ाकर घी का दीपक जलाया जाता है।
- फिर धूप दीप जलाया जाता है और तिलक किया जाता है।
- भगवान विष्णु को गंध, पुष्प और साथ ही तुलसी भी अर्पित की जाती है।
- फिर रात में भी भगवान विष्णु और लक्ष्मी माता की पूजा-अर्चना की जाती है।
- अगले दिन सुबह स्नान करके पूजा की जाती है और किसी ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है।
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा (Varuthini Ekadashi 2023Vrat Katha)
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मांधाता नामक राजा राज करता था। वह अत्यंत दान शील और तपस्वी था। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था, तभी वहां एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा परंतु राजा घबराया नहीं अपनी तपस्या में लीन रहा। तपस्या धर्म अनुकूल उसने क्रोध ना करके भगवान विष्णु से प्रार्थना करनी शुरू कर दी। उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और उसे भालू से बचाया।
राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत दुखी हुआ। उसे दुखी देखकर भगवान विष्णु बोले कि वह शोक न करे, बल्कि मथुरा जाये और मथुरा जाकर वरुथिनी एकादशी का व्रत रखे। व्रत रखकर भगवान विष्णु की वराह अवतार मूर्ति की पूजा करे। उसके प्रभाव से वह फिर से सम्पूर्ण अंगों वाला हो जायेगा।
उसका जो पैर खाया है, वह उसके पिछले जन्म के दुष्कर्म हैं, जिसकी सज़ा उसे मिली है। भगवान की आज्ञा अनुसार राजा मांधाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र की पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया और उसे स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
वरुथिनी एकादशी का महत्व
वैशाख मास में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। एकादशी का व्रत रखने से बुरे भाग्य को भी बदला जा सकता है। इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति अपने जीवन में समृद्धि, प्रचुरता और सौभाग्य प्राप्त करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा आराधना करते हैं। पूजा संपन्न होने के बाद अपने यथाशक्ति के अनुसार व्रत रखने वाला व्यक्ति दान पुण्य करता है। इस पावन दिन व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। वरुथिनी एकादशी को दुख और कष्ट मुक्ति के लिए विशेष रूप से प्रभावी माना गया है।
इस दिन जो भी भक्त सच्चे मन से उपवास, दान, तर्पण और विधि विधान से पूजा करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। उनके सभी पापों का अंत होता है। जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान मिलता है, उससे अधिक फल वरुथिनी एकादशी का उपवास करने से मिलता है। साथ ही घर में सुख शांति और समृद्धि का वास होता है।
ऐसा कहा जाता है, कि जिन लोगों को यमराज से डर लगता है, उन्हें वरुथिनी एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिए। इस व्रत को करने से उनके सारे डर दूर भाग जाते हैं। इस दिन व्रती भूखे रहकर भगवान विष्णु की पूजा आराधना करते हैं।
वरुथिनी एकादशी पूजा सामग्री (Varuthini Ekadashi 2023 Pooja Samagri)
भगवान विष्णु के लिए पीला वस्त्र श्री विष्णु जी की मूर्ति, फूलों की माला, नारियल, सुपारी, धूप, दीप तथा घी पंचामृत, अक्षत, तुलसी पत्र, चंदन, कलश, प्रसाद के लिए मिठाई, फल इस्तेमाल किया जाता है।
वरुथिनी एकादशी व्रत का फल
वरुथिनी एकादशी सभी पापों को नष्ट करने, सौभाग्य देने तथा मोक्ष देने वाली एकादशी है। वरुथिनी एकादशी का फल दस हज़ार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है। कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के समय एक मन स्वर्ण दान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही वरुथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है।
वरुथिनी एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोग कर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त करता है। शास्त्रों में अन्न दान और कन्यादान को सबसे बड़ा दान माना गया है। वरुथिनी एकादशी के व्रत से अनुदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर पर मिलता है। इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से हज़ार गोदान का फल मिलता है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक है। इस दिन खरबूजा का दान करना चाहिए।
वरुथिनी एकादशी तिथि 2023 (Varuthini Ekadashi 2023 Date)
वरुथिनी एकादशी व्रत 16 अप्रैल 2023, रविवार को है।
एकादशी तिथि 15 अप्रैल, 2023 को 08:45PM पर आरंभ होगी। 16 अप्रैल, 2023 को 06:14PM पर समाप्त होगी।
FAQs
16th April 2023
15 अप्रैल, 2023 को 08:45PM
17th April 2023, 05:54 AM to 08:29 AM