Devshayani Ekadashi 2023 Date: This year Devshayani Ekadashi will fall on Thursday, 29th July 2023. It is believed that from Devshayani Ekadashi’s day, Lord Vishnu goes into yoga nidra for four months.
देवशयनी एकादशी आषाढ़ चंद्र मास के शुक्ल पक्ष का ग्यारहवां दिन है। यह जून और जुलाई के बीच आती है। इसे कई अन्य नाम से जाना जाता है जैसे कि महा एकादशी, पदमा एकादशी आदि। शास्त्रों के अनुसार देवशयनी एकादशी से चतुर मास का आरंभ हो जाता है। इस एकादशी का बहुत धार्मिक महत्व है। जो भक्त सच्चे मन से भगवान की पूजा करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। देवशयनी एकादशी के दिन शास्त्रों में सात कार्य बताए गए हैं जो कि भक्तजन करेंगे तो बहुत सफल होते हैं। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान को नए वस्त्र पहना देनी चाहिए क्योंकि इसी दिन से भगवान चार महीने के लिए सो जाते हैं और सहन अवस्था में ही रहते हैं।
Devshayani Ekadashi 2023 Tithi
Ekadashi | Devshayani Ekadashi 2023 |
Date | June 29, 2023 |
Day | Thursday |
देवशयनी एकादशी 2023 का महत्व
देवशयनी एकादशी एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि माना जाता है कि भगवान विष्णु पूरे मानसिक विश्राम के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं। इस अवधि के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। इस एकादशी का व्रत जो भी भक्त सच्चे मन से रखता है, उसके सभी पापों का नाश हो जाता है और सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। मृत्यु के बाद उसे स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है और मान्यता के अनुसार इस एकादशी की कथा पढ़ने और सुनने से सहस्त्र गोदान के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है। इस व्रत में भगवान विष्णु और पीपल के वृक्ष की पूजन का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है।
Devshayani Ekadashi 2023 Puja Vidhi (देवशयनी एकादशी पूजा विधि)
देवशयनी एकादशी व्रत की शुरुआत दशमी की तिथि रात्रि को हो जाती है। दशमी की रात्रि में नमक का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। अगले दिन प्रात काल उठकर अपने दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद व्रत का संकल्प करके भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर आसीन करके उनका पूजन करना चाहिए। पंचामृत से स्नान करवाने के पश्चात धूप, दीप, पुष्प आदि से उनका पूजन करना चाहिए।
पूजन के अंत में सफेद चादर से पलंग पर श्री हरि जी को शयन कराना चाहिए। एकादशी के व्रत में रात्रि जागरण का बहुत महत्व होता है। भगवंत चिंतन करते हुए एकादशी की रात्रि में जागरण किया जाता है। वर पाने के लिए इस दिन भगवान को कुछ विशिष्ट भोग लगाए जाते हैं जैसे अच्छी वाणी के लिए गुड़ का भोग लगाया जाता है, दीर्घायु और पुत्र की प्राप्ति के लिए तिल का भोग लगाया जाता है, शत्रुओं के नाश के लिए इस दिन श्रीहरि को कड़वे तेल का भोग लगाया जाता है।
देवशयनी एकादशी 2023 पूजा के लाभ
देवशयनी एकादशी व्रत करने से सभी तरह के कष्ट और पाप नष्ट हो जाते हैं एवं मनुष्य शुद्ध होता है। साथ ही भक्तों के संकट दूर होते हैं, सुख शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
शास्त्रानुसार देवशयन की अवधि में साधक के लिए नियम
- जो साधक वाक् सिद्धि प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें देवशयनी की अवधि में मीठे पदार्थों का त्याग करना होता है।
- जो साधक दीर्घायु एवं आरोग्य जीवन की प्राप्ति करना चाहते हैं, उन्हें इस अवधि में तली हुई वस्तुओं का त्याग करना होता है।
- जो साधक वंश वृद्धि एवं पुत्र पुत्रआदि की उन्नति करना चाहते हैं, उनको इस अवधि के समय दूध एवं दूध से बनी हुई वस्तुओं का त्याग करना होता है।
- जो साधक अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें इस अवधि के समय धातु के पात्र का त्याग कर के पत्तों पर भोजन करनाहोता है।
- जो साधक अपने समस्त ज्ञात अज्ञात पापों का क्षय करना चाहते हैं, उन्हें देवशयनी की अवधि में अयाचित (बिना मांगे प्राप्त हुआ भजन) करनाहोता है।
- इसके अतिरिक्त जो साधक अपने समस्त ज्ञात अज्ञात पापों का चयन करना चाहते हैं, उन्हें देवशयनी की अवधि में एकभुक्त भोजन अर्थात केवल एक बार भोजन करना होता है।
देवशयनी एकादशी 2023 व्रत कथा
सूर्यवंश में एक अत्यंत चक्रवर्ती सत्यवादी और अत्यंत प्रभावशाली मांधाता नामक राजा उत्पन्न हुए। वह अपनी प्रजा का पुत्र की भांति का पालन किया करते थे और उन्होंने बहुत दिन तक राज्य किया। उनकी सारी प्रजा धन-धान्य से भरपूर और सुखी थी। उनके राज्य में कभी अकाल नहीं पड़ता था।
एक समय उस राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया। प्रजा अन्न की कमी के कारण अत्यंत दुखी हो गई। अन्न के ना होने से राज्य में यज्ञादि भी बंद हो गए। कुछ काल के बाद सुधा से व्याकुल प्रजाजन आपस में बातें करके राजा के पास गए और हाथ जोड़कर अत्यंत नम्रता के साथ उनसे कहा कि वर्षा के ना होने के कारण सारी प्रजा तड़प रही है। वह कोई ऐसी युक्ति करें, जिस से सभी प्रजा के कष्ट निवृत्त हो जाएं। इस प्रकार प्रजा के दीन वचनों को सुनकर के राजा ने कहा कि वह लोग सच कह रहे हैं। अन्न उत्पन्न होने का मूल कारण वर्षा ही है, जिसके ना होने पर लोगों को कष्ट उठाना पड़ रहा है। राजा ने बहुत विचार किए पर उनके समझ में कुछ भी नहीं आ रहा। प्रजा को समझा कर राजा ने प्रेम पूर्वक पूजन किया और कुछ मनुष्यों को साथ लेकर वह वन को चले गए।
वह अनेक ऋषियों के आश्रम में भ्रमण करते हुए अंत में ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे। वहां राजा ने घोड़े से उतर कर अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया। मुनि ने राजा को आशीर्वाद देकर कुशलक्षेम के पश्चात उनसे आश्रम में आने का कारण पूछा। राजा ने हाथ जोड़कर विनीत भाव से कहा कि सब प्रकार से धर्म पालन करने पर भी उनके राज्य में अकाल पड़ गया है। इससे प्रजा बहुत दुखी है। अपनी प्रजा को कष्ट से छुड़ाने के लिए राजा मुनि के पास गया है। राजा की कष्टपूर्ण बात सुनकर ऋषि ने कहा कि यह युग सर्वयुगो में श्रेष्ठ है, कारण की इस युग में धर्मचार पदों में वर्तमान है। इसमें तपस्या आदि धर्मकारी ब्राह्मण ही कर सकते हैं अन्य जाति नहीं कर सकते ।ब्राह्मण ने बताया कि उनके राज्य में एक शुद्र तपस्या कर रहा है। इसी दोष के कारण उनके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है तथा उनके राज्य और प्रजा के कल्याण के लिए उस शुद्र तपस्वी का वध करना होगा। इस पर राजा कहने लगे कि वह उस निरपराध तपस्या करने वाले शूद्र को नहीं मार सकते इसलिए वह कोई और उपाय बताएं ताकि जनता के संकट को खत्म किया जा सके।
तब ऋषि कहने लगे कि यदि कोई अन्य उपाय करना चाहते हैं तो उन्हें आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पदमा नामक एकादशी का व्रत करना होगा। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में वर्षा होगी और सदा सुख प्राप्त करेगी क्योंकि इस एकादशी का व्रत सब सिद्धियों को दान देने वाला है। इस एकादशी का व्रत प्रजा, सेवक तथा मंत्रियों सहित करना होगा। इस व्रत को करने से राज्य के सब कष्ट दूर हो जाएंगे। मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने घर वापस आ गए और सब प्रजा सहित आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पदमा नामक एकादशी का व्रत प्रेम पूर्वक करने लगे। इस व्रत के प्रभाव से राजा के राज्य में उत्तम वृष्टि हुई और पृथ्वी जल से परिपूर्ण हो गई। भगवान की कृपा से उनकी प्रजा कष्ट मुक्त हो गई; इसलिए इस व्रत को सभी मनुष्य को करना चाहिए।
यह व्रत मुक्ति प्रदान करने वाला और अत्यंत ही पुण्य फल को देने वाला है। इसको पढ़ने और सुनने से मनुष्य के घोर से घोर पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
Devshayani Ekadashi 2023 Date (देवशयनी एकादशी 2023 तिथि)
देवशयनी एकादशी Thursday 29 June 2023 को है।
देवशयनी एकादशी तिथि शुरू:- 3:18 AM on June 29, 2023
देवशयनी एकादशी तिथि समाप्त:- 2:42 AM on June 30, 2023
Frequently Asked Questions
देवशयनी एकादशी 29 June को हैं।
देवउठनी एकादशी पर शुद्ध सात्विक भोजन खाना चाहिए।
Devshayani Ekadashi 2023 tithi will start at 3:18 AM on June 29, 2023.