Surya Grahan 2023: First Solar Eclipse on 20 April

There are two Surya Grahan in 2023 out of which the first Surya Grahan is on 20th April  and the second one is on 14th October.

जिस समय चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच से होकर गुजरता है एवं पृथ्वी से देखने पर चंद्रमा के पीछे सूर्य का बिंब कुछ समय के लिए ढक जाता है इसी स्थिति को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। जब यह स्थिति बनती है, उस समय अमावस्या होती है। सूर्य ग्रहण तीन प्रकार का होता है – पूर्ण सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्यग्रहण तथा वलयाकार सूर्यग्रहण

पूर्ण सूर्यग्रहण (Purn Surya Grahan 2023)

पूर्ण सूर्य ग्रहण के समय पृथ्वी पर अंधकार जैसी स्थिति हो जाती है और सूर्य दिखाई नहीं देता। ऐसी स्थिति तब उत्पन्न होती है जब चांद सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है और धरती के बहुत कम क्षेत्र से ही सूर्य दिखाई देता है।

आंशिक सूर्य ग्रहण (Aanshik Surya Grahan 2023)

आंशिक सूर्यग्रहण की स्थिति में सूर्य के केवल कुछ भाग ही दिखाई देते हैं। आंशिक सूर्य ग्रहण की स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब चंद्रमा सूरज तथा धरती के बीच में इस प्रकार आ जाता है कि सूरज के कुछ भाग पर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता और कुछ पर ग्रहण का प्रभाव पड़ता है।

वलयाकार सूर्य ग्रहण 

जब चंद्रमा पृथ्वी से बहुत दूर होता है और दूर रहते हुए ही पृथ्वी और सूरज के बीच में आ जाता है, उस समय सूरज का सिर्फ मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है जिस वजह से पृथ्वी से देखने पर चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता बल्कि सूर्य के बाहर का क्षेत्र एक रिंग के आकार में चमकता हुआ दिखाई देता है, रिंग के रूप में बने हुए इसी सूर्य ग्रहण को वलयाकार सूर्यग्रहण  कहा जाता है।

वैज्ञानिक दृष्टि से सूर्य ग्रहण का महत्व

सूर्य ग्रहण का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्व है, सूर्य ग्रहण की इस स्थिति को किसी उत्सव से कम नहीं माना जाता। वैज्ञानिक गणना के अनुसार सूर्य ग्रहण वह समय होता है जब ब्रह्मांड में कई अद्भुत घटनाएं घटित हो रही होती है और नए नए तथ्यों पर काम करने का मौका मिल जाता है। सूर्य ग्रहण अधिकतर 10,000 किलोमीटर लंबे तथा 250 किलोमीटर चौड़े क्षेत्र में देखे जा सकते हैं और यह स्थिति ज्यादा से ज्यादा 11 मिनट तक हो सकती है।

विज्ञान के अनुसार संसार में सभी पदार्थों की संरचना सूर्य किरणों के माध्यम से ही संभव हो पाई है इसलिए यदि सही प्रकार से सूर्य और उसकी किरणों के प्रभावों को समझना है तो सूर्य ग्रहण को भी समझना आवश्यक है तभी सूर्य की सारी स्थिति को समझा जा सकता है। सूर्य की हर एक किरण विशेष कण का प्रतिनिधित्व करती है और सूर्य ग्रहण के समय स्थिति और भी ज्यादा स्पष्ट हो जाती है। वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य ग्रहण लगने की स्थिति को देखा जा सकता है, उनके अनुसार सूर्य ग्रहण को डायरेक्ट नहीं देखना चाहिए बल्कि किसी उपकरण के इस्तेमाल से ही देखना चाहिए क्योंकि डायरेक्ट देखने से आंख की रोशनी पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

खगोल शास्त्रियों के मत के अनुसार 18 साल में 41 सूर्यग्रहण होते हैं और हर साल पांच सूर्य ग्रहण होने की संभावना हो सकती है। परंतु ऐसा बहुत कम बार दिखाई देता है, ज्यादातर हर साल 2 सूर्य ग्रहण होते हैं। हर एक ग्रहण 18 साल 11 दिन बीत जाने के बाद दोबारा शुरू होता है, परंतु वह अपने पहले के स्थान पर नहीं होता। वैज्ञानिकों के अनुसार 11 मिनट से ज्यादा सूर्य ग्रहण की अवधि नहीं हो सकती।

सूर्य ग्रहण से जुड़ी एक पौराणिक कथा

हिंदू मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के समय देवताओं तथा दानवों के बीच अमृत पान को लेकर बहस शुरू हो गई थी। इस बहस को समझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप ले लिया। मोहिनी के रूप में जब वह देवताओं तथा दानवों के बीच गए तो वह दोनों उन पर मोहित हो गए। मोहिनी के रूप में भगवान विष्णु में देवताओं तथा दानवों को अलग-अलग लाइन में बिठा दिया और उन्हें अमृत पान कराने लगे। जिस समय वह देवताओं के अमृत पान करा रहे थे उस समय स्वर भानु नामक दैत्य को भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार पर शक हो गया। वह छल कपट से देवताओं की लाइन में बैठ गया। सूर्य तथा चंद्र देव ने स्वर भानु को पहचान लिया और भगवान विष्णु को बता दिया। यह बात सुनते ही भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वर भानु पर वार कर दिया। परंतु तब तक स्वर भानू ने अमृत को अपने गले तक ले लिया था जिस वजह से उसकी मृत्यु नहीं हो पाई। उसका शरीर दो भागों में विभाजित हो गया। सिर वाले भाग को राहु कहा जाने लगा और धड वाले हिस्से को केतू कहा जाने लगा है। उस समय से ही स्वर भानु सूर्य तथा चंद्र ग्रहण को अपना दुश्मन मानने लगा और पूर्णमासी के दिन चंद्रमा को प्रभावित करने लगा एवं अमावस्या के दिन सूर्य को प्रभावित करने लगा। जिस दिन वह सूर्य को प्रभावित करता है, उस दिन को सूर्यग्रहण के नाम से जाना जाता है।

ज्योतिष विज्ञान में सूर्य ग्रहण का महत्व

ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से सूर्य ग्रहण का बहुत महत्व है, इसे एक अद्भुत चमत्कार के तौर पर देखा जाता है। वैदिक काल से ही सूर्य ग्रहण को काफी महत्व दिया जाता है, हिंदू शास्त्र ऋग्वेद के अनुसार अत्रि मुनि के परिवार के पास सूर्य ग्रहण से संबंधित सारा ज्ञान था तथा धार्मिक, वैदिक, वैचारिक, वैज्ञानिक तथा ज्योतिष ग्रंथों में सूर्य ग्रहण का पूरा वर्णन किया गया है। ऋषि मुनियों के अनुसार सूर्य ग्रहण लगने के समय भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के समय कीटाणु बहुत ज्यादा फैलने लग जाते हैं और खाद्य वस्तुएं दूषित हो जाती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य ग्रहण के समय केतु सूर्य को ग्रस्त करता है तथा चंद्रमा और सूर्य की छाया एक साथ चलते हैं।

सूर्य ग्रहण के दौरान ऋषिमुनियों द्वारा कही जाने वाली बातें

सूर्य ग्रहण के दौरान बहुत सी बातें प्रचलित हैं, हिंदू शास्त्रों में भी चंद्रमा तथा सूर्य ग्रहण से जुड़ी हुई बहुत सारी बातें तथा तथ्य स्पष्ट किए गए हैं। कई ऐसे कथन है जो कि ऋषि-मुनियों द्वारा बताए गए हैं, जिनका पालन आज भी कई लोग करते हैं, उन सब कथनों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार है:-

  • ऋषि मुनियों के अनुसार सूर्य ग्रहण के समय पात्रों मेंअग्नि डालकर वातावरण को पवित्र बनाया जाता है क्योंकि उनका कथन है कि इससे वातावरण में सारे कीटाणु मर जाते हैं।
  • उनके अनुसार ग्रहण के बादही स्नान करना चाहिए क्योंकि स्नान के दौरान शरीर के अंदर ऊर्जा का प्रवाह बढ़ जाएगा और अंदर और बाहर के सारे कीटाणु नष्ट हो जाएंगे तथा धूल कर बह जाएंगे।
  • एक और कथन के अनुसार सूर्य ग्रहण के समय नेत्र तथा पित्त की शक्ति कमजोर हो जाती है और मनुष्य को कमजोरी महसूस होती है।
  • एक कथन यह भी है कि सूर्य ग्रहण के समय गर्भवती को गोबर तथा तुलसी का लेप लगा देना चाहिए ताकि उनको राहु और केतु का स्पर्श ना हो पाए, इसके अतिरिक्त चाकू से कुछ भी काटने को मना किया गया हैक्योंकि उनकी ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं या फिर जुड़ जाते हैं।

सूर्य ग्रहण का सूतक (Surya Grahan ka Sutak 2023)

सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले सूर्य ग्रहण का सूतक ग्रहण लगता है, हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस समय किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नहीं किया जाता। मंदिरों के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते हैं। इसके अतिरिक्त सूर्य ग्रहण के दौरान खाना बनाना तथा पकाना दोनों ही काम अशुभ माने जाते हैं।

सूर्यग्रहण को लेकर हिंदू मान्यताएं 

  • ग्रहण लगने के बादस्नान करने के बाद भगवान की पूजा करनी चाहिए, भजन कीर्तन करके ग्रहण के समय का उपयोग करना चाहिए।
  • ग्रहण के समय यदि मंत्रों का जाप किया जाए तो इससे सिद्धि प्राप्त होती है।
  • जितने समय तक सूर्य ग्रहण चलता है, उस समयतक तेल लगाना, भोजन करना, मल मूत्र त्याग करना, मंजन करना आदि वर्जित किया गया है।
  • भारत में ग्रहण समाप्त हो जाने पर कई जगहों पर वस्त्र तथा बर्तन धोने का भी नियम है।
  • कई नियमों अनुसार पुराना पानी आदि नष्ट किया जाता है और नया भोजन पकाया जाता है तथा ताजा पानी भरकर पिया जाता है।
  • सूर्य ग्रहण के समय पत्ते, तिनके, लकड़ी तथाफूल आदि तोड़ने को भी मना किया गया है।
  • इसके अतिरिक्त ग्रहण के समय ताला खोलना तथा सोना भी मना किया गया है।
  • कथनों के अनुसार सूर्य ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों कोअनाज, जरूरतमंद लोगों को दान दक्षिणा देना चाहिए इससे मनवांछित फल प्राप्त होता है।
  • धार्मिक और ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार यह घटना एक अशुभ घटना होती है।
  • सूर्य ग्रहण के समय किसी भी प्रकार का कार्य करना वर्जित होता है।
  • सूर्य ग्रहण के समय पूजा पाठ करना भी वर्जित होता है तथा इस समय देवी देवताओं की मूर्ति को छूना भी अशुभ माना जाता है।
  • सूर्य ग्रहण के समय सूर्य के बीज मंत्र का जाप किया जाता है ताकि अशुभ प्रभाव से बचा जा सके।
  • सूर्य ग्रहण के यंत्रों की पूजा की जाती है ताकि अशुभ प्रभाव से छुटकारा पाया जा सके।
  • सूर्य ग्रहण के दौरान और ग्रहण के खत्म होने तक गर्भवती महिलाओं को ग्रहण नहीं देखना चाहिए।
  • सूर्य ग्रहण के समय गर्भवती महिलाओं को घर से बाहर निकलना भी वर्जित किया जाता है।
  • मान्यताओं के अनुसार सूर्य ग्रहण के समय सबसे ज्यादा नकारात्मक शक्तियां वातावरण में होती है, इसलिए ऐसे वातावरण में बाहर नहीं जाना चाहिए।
  • इसके अतिरिक्त ग्रहण के समय श्मशान घाट में भी जाना वर्जित किया गया है।
  • सूर्य ग्रहण के समय बाल तथानाखून काटना भी मना किया गया है।

सूर्य ग्रहण 2023 (Surya Grahan 2023)

साल का पहला सूर्य ग्रहण 20 अप्रैल 2023 को गुरुवार के दिन दिखाई देगा।

सूर्य ग्रहण का समय 7:04AM से 12:29PM तक है।

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