Phulera Dooj 2023 Date, फुलेरा दूज का अर्थ, महत्व, कथा, शुभ मुहूर्त
फुलेरा दूज/ फुलेरा दूज का अर्थ/ फुलेरा दूज का महत्व/ फुलेरा दूज मनाने का तरीका/ फुलेरा दूज की कथा/ फुलेरा दूज का शुभ मुहूर्त फुलेरा दूज तिथि |
फुलेरा दूज को एक शुभ और सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है, जो कि उत्तर भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। फुलैरा दूज होली के त्यौहार से जुड़ा एक अनुष्ठान रुपी त्यौहार माना जाता है और मुख्य रूप से उत्तर भारत में हिंदी विक्रमी सम्वत पंचांग के अनुसार फाल्गुन महीने (फरवरी-मार्च) के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन मनाया जाता है। हर साल फुलेरा दूज का त्यौहार दो प्रमुख त्योहारों के बीच यानी कि बसंत पंचमी और होली के आता है। इस दिन मथुरा और वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों में विशेष अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है।
कुछ मंदिरों में, भगवान कृष्ण के चेहरे का रंग थोड़ा सांवला होता है। उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में ऐसा माना जाता है, कि फुलैरा दूज का पूरा दिन ही शुभ होता है। इसलिए ज्योतिष और पंडितों से पूजा के लिए शुभ समय पता करने की आवश्यकता नहीं होती है। फुलेरा दूज के इस विशेष गुण के कारण कुछ समुदायों द्वारा विवाह करने के लिए यह दिन चुना जाता है। कुछ लोगों द्वारा बाल विवाह जैसा गलत कार्य भी इस दिन किया जाता है।
मथुरा और वृंदावन के कुछ मंदिरों में भक्तों को भगवान कृष्ण के विशेष दर्शन का भी मौका प्राप्त हो सकता है। जहां हर साल फुलेरा दूज के उचित समय पर होली उत्सव में भाग लेने वाले होते हैं। इस शुभ दिन पर विभिन्न अनुष्ठानों और समारोहों का आयोजन किया जाता है और साथ ही भगवान कृष्ण की मूर्तियों को होली के आगामी उत्सव पर दर्शान के लिए रंगों से सराबोर किया जाता है।
फुलेरा दूज का अर्थ
यह त्योहार भगवान कृष्ण को समर्पित किया जाता है। शाब्दिक अर्थ में फुलेरा दूज का अर्थ है ‘फूल’ जो फूलों को दर्शाता है। यह माना जाता है, कि भगवान कृष्ण द्वारा फूलों के साथ खेला जाता था और फुलेरा दूज की शुभ पूर्व संध्या पर होली के त्योहार में भाग लिया जाता था। यह त्योहार लोगों के जीवन में खुशियां और उल्लास लेकर आता है।
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फुलेरा दूज का क्या महत्व
इस त्योहार को आकाशीय और ग्रह संबंधी भविष्यवाणियों के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण और शुभ दिनों में से एक माना जाता है, क्योंकि यह दिन बहुत ही भाग्यशाली माना जाता है। फुलेरा दूज का दिन किसी भी तरह के हानिकारक प्रभावों और दोषों से प्रभावित नहीं होता है और इस प्रकार फुलेरा दूज “अबूझ मुहूर्त” माना जाता है।
फुलेरा दूज मनाने का तरीका
- इस विशेष दिन पर भक्तों द्वारा भगवान कृष्ण की पूजा और आराधना की जाती है। उत्तरी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भव्य उत्सव मनाया जाता है।
- भक्तों द्वारा घरों और मंदिरों दोनों जगह में देवता की मूर्तियों या प्रतिमाओं को सुशोभित किया जाता है और सजाया जाता है।
- भगवान कृष्ण के साथ रंग-बिरंगे फूलों से होली खेलने का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान जो किया जाता है।
- ब्रज क्षेत्र में इस विशेष दिन पर देवता के सम्मान में भव्य उत्सव किया जाता है।
- मंदिरों को रोशनी और फूलों से सजाया जाता है और भगवान कृष्ण की मूर्ति को एक सजाये गए रंगीन मंडप में रखा जाता है।
- फुलेरा दूज के दिन रंगीन कपड़े का एक छोटा टुकड़ा भगवान कृष्ण की मूर्ति की कमर पर लगाया जाता है। जिसका प्रतीक यह माना जाता है कि वह होली खेलने के लिए तैयार हैं।
- फुलेरा दूज के दिन ‘शयन भोग’ की रस्म पूरी करने के बाद, रंगीन कपड़े को हटा दिया जाता है।
- पवित्र भोजन (विशेष भोग) फुलेरा दूज के दिन शामिल किया जाता है। जिसमें पोहा और विभिन्न अन्य विशेष सेव शामिल किए जाते हैं।
- पवित्र भोजन पहले देवता को अर्पित किया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में सभी भक्तों में बाटा जाता है।
- इस दिन समाज में रसिया और “संध्या आरती” किए जाने वाले दो प्राथमिक अनुष्ठान माने जाते हैं।
- मंदिरों में विभिन्न प्रकार के धार्मिक आयोजन और नाटक किए जाते हैं, जिनमें भक्तों द्वारा कृष्ण लीला और भगवान कृष्ण के जीवन की अन्य कहानियों पर भाग लिया जाता हैं और प्रदर्शन किया जाता हैं।
- फुलेरा दूज के दिन देवता के सम्मान में भजन-कीर्तन किया जाता है।
- होली के आगामी उत्सव के प्रतीक देवता की मूर्ति पर थोड़ा गुलाल (रंग) लगाया जाता है।
- समापन के लिए पुजारी द्वारा मंदिर में इकट्ठा होने वाले सभी लोगों पर गुलाल (रंग) छिड़काया जाता है।
फुलेरा दूज की पौराणिक कथा
ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण लंबे समय से अपने कार्य में व्यस्त रहते थे। जिसके कारण भगवान श्रीकृष्ण राधा रानी से नहीं मिल पाते थे। राधा रानी बहुत दुखी रहने लगी गई थी। राधा रानी के दुखी होने के कारण प्रकृति पर विपरित प्रभाव पड़ने लग गया था। भगवान श्रीकृष्ण प्रकृति की हालत को देख कर राधा रानी का दुख और नाराजगी को दुर करने के लिए उनसे मिलने के लिए गये। जब भगवान श्रीकृष्ण राधा रानी से मिलें तो राधा रानी और गोपियां प्रसन्न हो गईं और चारों ओर फिर से हरियाली छाने लग गई। भगवान श्रीकृष्ण ने एक फूल तोड़ा और राधारानी के ऊपर फेंक दिया। इसके बाद राधा रानी ने भी श्रीकृष्ण पर फूल तोड़कर फेंक दिया। इसके बाद गोपियों ने भी एक दूसरे पर फूल फेंकने शुरू कर दिए। इस प्रकार हर तरफ फूलों की होली शुरू हो गई। यह सब फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की दूसरी तिथि (द्वितीया तिथि) को हुआ था तब से इस तिथि को फुलेरा दूज के नाम से एक त्योहार के रूप में मनाया जाता है।
फुलेरा दूज का शुभ मुहूर्त
फुलेरा दूज का दिन विवाह, संपत्ति की खरीद इत्यादि सभी प्रकार के शुभ कार्यों को करने के लिए दिन अत्यधिक पवित्र माना जाता है। इस दिन शुभ मुहूर्त पर विचार करने या किसी विशेष शुभ मुहूर्त को जानने के लिए पंडित से परामर्श करने की आवश्यकता नहीं होती है। उत्तर भारत के राज्यों में ज्यादातर शादी समारोह फुलेरा दूज की पूर्व संध्या पर ही किए जाते हैं। लोगों द्वारा आमतौर पर इस दिन को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए सबसे समृद्ध माना जाता है।
फुलेरा दूज तिथि 2023 (Phulera Dooj Date)
- फुलेरा दूज तिथि 21 फरवरी, 2023 को मंगलबार के दिन होगी।
- फुलेरा दूज तिथि 21 फरवरी, 2023 को 9:05 मिनट पर प्रारंभ होगी।
- फुलेरा दूज तिथि 22 फरवरी, 2023 को 5:55 मिनट पर खत्म होगी।
संबंधित प्रश्न (Phulera Dooj 2023 FAQ’s)
(Q:1) फुलेरा दूज का विशेष रूप से अनुष्ठान कहां किया जाता है?(Ans) फुलेरा दूज का विशेष रूप से मथुरा और वृंदावन में अनुष्ठान किया जाता है। |
(Q:2) फुलेरा दूज का त्यौहार किसे समर्पित किया जाता है?(Ans) फुलेरा दूज का त्यौहार भगवान श्री कृष्ण को समर्पित किया जाता है। |
(Q:3) फुलेरा दूज का शाब्दिक अर्थ क्या है?(Ans) फुलेरा दूज का शाब्दिक अर्थ “फूलों” से लिया जाता है। |
(Q:4) फुलेरा दूज का त्यौहार 2023 को कब मनाया जाएगा? |
(Ans) फुलेरा दूज का त्यौहार 21 फरवरी, 2023 को रविवार के दिन मनाया जाएगा। |